क़तर की राजधानी दोहा में इस समय अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के लिए शांति वार्ता चल रही है. ये बातचीत ऐसे समय में हो रही है, जब दुनिया में युग परिवर्तन वाली कई ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं, जिनमें इक्कीसवीं सदी का रुख़ बदलने की क्षमता है. एक तरफ़ तो तबाही लाने वाली कोविड-19 की महामारी ने अचानक ऐसा धावा बोला कि पूरी दुनिया हैरान रह गई. वहीं दूसरी तरफ़, मानवता ने इस साझा दुश्मन से लड़ने के लिए इस मुश्किल वक़्त में एकरूपता और आपसी सहयोग की ऐसी मिसाल पेश की, जो पहले नहीं देखी गई थी. ऐसी ही चर्चा तब भी छिड़ी, जब अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति के लिए तालिबान और मौजूदा अफ़ग़ान सरकार के बीच बातचीत शुरू हुई. कहा गया कि इस बातचीत की सफलता से चार दशक से जंग की विभीषिका झेल रहे अफ़ग़ानिस्तान में शांति और समृद्धि के नए दौर की शुरुआत होगी. अफ़ग़ानिस्तान ने जिस तरह देश में शांति बहाली के लिए आम सहमति बनाने का मज़बूत इरादा और कोशिश दिखाए हैं, उससे क्षेत्रीय ही नहीं, विश्व स्तर पर ये बात कही जा रही है कि इस बार अफ़ग़ानिस्तान अपने इस लक्ष्य को पाने में सफल होगा. जिस तरह से पूरी दुनिया ने एक सुर से अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली की कोशिशों का हौसला बढ़ाया है, उससे लगता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए जो कोशिशें हो रही हैं, उन्हें विश्व का व्यापक समर्थन हासिल है. दुनिया भर के लोग ये मानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने का अवसर मिलना चाहिए. तालिबानी आंदोलन को लेकर भी दुनिया की सोच वही है, जो आम अफ़ग़ानी जनता की है. इससे न केवल अफ़ग़ानिस्तान का भला होगा, बल्कि इस बात की भी काफ़ी संभावना है कि इससे पूरे क्षेत्र ही नहीं, विश्व भर में शांति बहाली में काफ़ी मदद मिल सकेगी.
अफ़ग़ानिस्तान ने जिस तरह देश में शांति बहाली के लिए आम सहमति बनाने का मज़बूत इरादा और कोशिश दिखाए हैं, उससे क्षेत्रीय ही नहीं, विश्व स्तर पर ये बात कही जा रही है कि इस बार अफ़ग़ानिस्तान अपने इस लक्ष्य को पाने में सफल होगा.
आने वाले समय में अफ़ग़ानिस्तान के दानदाता देशों और संस्थाओं की जेनेवा में होने वाली बैठक में हर साझेदार को ये अवसर मिलेगा कि वो अफ़ग़ानिस्तान में शांति को लेकर अपनी दृढ़ता और एकजुटता दिखा सके. और अफ़ग़ानिस्तान में आपसी सहयोग बढ़ाने की प्रक्रिया को मज़बूत बना सके. तालिबान के आंदोलन के लिए तो ये सुनहरा अवसर है. संगठन को चाहिए कि वो इस मौक़े को हाथ से न जाने दे. और हर क़ीमत पर हिंसा को रोकने की कोशिश करे. युद्ध विराम का पालन करें और ये माने कि अफ़ग़ानिस्तान अब एक नए युग में प्रवेश कर चुका है. ये बात भी बेहद महत्वपूर्ण है कि अफ़ग़ानिस्तान के सहयोगी देश एक ही मक़सद के लिए मिलकर काम करें. और देश में ऐसी सरकार बनाने में सहयोग करें, जो अफ़ग़ानिस्तान की जनता के साथ साथ इस क्षेत्र और पूरे विश्व को स्वीकार्य हो.
ये लक्ष्य सबसे अच्छा है
यहां ये बात समझनी सबसे महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली के लिए जो आम सहमति बनी है, वो अफ़ग़ानिस्तान के उस सफर का नतीजा है, जो उसने एक संवैधानिक लोकतंत्र बनने की दिशा में तय किया है. एक दूसरे का विश्वास जीतने के लिए जो उपाय अफ़ग़ानिस्तान की सरकार कर रही है, वो भी 2001 में तालिबान की सरकार के पतन के बाद से अब तक देश में हुई प्रगति का ही नतीजा है. लोकतांत्रिक सरकार बनने के कारण ही आज अफ़ग़ानिस्तान में सशक्त, सतर्क और ऊर्जावान सामाजिक संगठन विकसित हो सके हैं. देश की पढ़ी लिखी जनता ने न केवल वहां की अफ़सरशाही को जवाबदेह बनाया है. बल्कि, देश के नेताओं को भी इस बात के लिए बाध्य किया है कि वो अफ़ग़ानिस्तान की जनता की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए ईमानदारी से प्रयास करें. ऐसी परिस्थिति ही एक स्थायी शांति समझौते की बुनियाद तैयार करेगी. क्योंकि आज अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की उम्मीदें बुलंदी पर हैं. लेकिन, उन्हें क्षेत्रीय समीकरणों का भी आभास है, तो ये अपेक्षाएं वास्तविकता के बेहद क़रीब भी हैं.
एक दूसरे का विश्वास जीतने के लिए जो उपाय अफ़ग़ानिस्तान की सरकार कर रही है, वो भी 2001 में तालिबान की सरकार के पतन के बाद से अब तक देश में हुई प्रगति का ही नतीजा है. लोकतांत्रिक सरकार बनने के कारण ही आज अफ़ग़ानिस्तान में सशक्त, सतर्क और ऊर्जावान सामाजिक संगठन विकसित हो सके हैं.
चार दशक से चले आ रहे युद्ध पर विराम लगाने की ज़रूरत है
अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ की सेनाओं के हमला करने के बाद से वहां के लोगों ने निर्मम नरसंहार और ज़िद भरे हिंसक संघर्ष का लंबा दौर देखा है. लेकिन, 2001 में देश में संविधान लागू होने के बाद से हालात बहुत बदल गए. लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूती मिली है. आर्थिक तरक़्क़ी हुई है. सामाजिक सुधार के लिए क़दम उठाए गए हैं. हालांकि, इन बदलावों के बीच जो नहीं बदला, वो है हिंसा का अनवरत दौर. अफ़ग़ानिस्तान में बेगुनाह लोगों की जान लेने का सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है. साल 2001 से अब तक 11 हज़ार से अधिक निर्दोष लोगों की बेशक़ीमती जान जा चुकी है. इसी तरह, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली और सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी कोशिशों के दौरान बहुत से लोगों को गंवाया है. पिछले 19 वर्षों के दौरान इस बेवजह के युद्ध के चलते अफ़ग़ानिस्तान के आम नागरिक और अफ़ग़ानिस्तान के सुरक्षाकर्मी (ANDSF) बीस से अधिक आतंकवादी संगठनों का मुक़ाबला करते हुए मारे गए हैं. इस अनवरत युद्ध के चलते लाखों लोग बेघर हुए हैं. अपना इलाक़ा छोड़ कर दूसरी जगह जाकर पनाह लेने को मजबूर हुए हैं.
हालांकि, इन बदलावों के बीच जो नहीं बदला, वो है हिंसा का अनवरत दौर. अफ़ग़ानिस्तान में बेगुनाह लोगों की जान लेने का सिलसिला अब भी बदस्तूर जारी है. साल 2001 से अब तक 11 हज़ार से अधिक निर्दोष लोगों की बेशक़ीमती जान जा चुकी है.
शांति की बुनियाद रखना
अफ़ग़ानिस्तान ने लंबे समय से चल रहे एक भद्दे और ग़ैरज़रूरी युद्ध की जो क़ीमत चुकाई है, उसे देखते हुए ही अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने शांति वार्ता के लिए घरेलू, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर आम सहमति बनाने की कोशिश की है. अफ़ग़ान सरकार ने भारत समेत बीस क्षेत्रीय और बीस अंतरराष्ट्रीय देशों के बीच तालिबान के साथ शांति वार्ता को लेकर आम सहमति बनाने की कोशिश की. इसके अलावा आम जनता का विश्वास जीतने के लिए व्यापक स्तर पर क़दम उठाए गए. जैसे कि शांति बहाली में सलाह मशविरा के लिए लोया जिरगा का गठन करना. लोया जिरगा तीन हज़ार सदस्यों वाली एक ऐसी पंचायत है, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान की जनता के तमाम समुदायों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं. इनमें विद्वान भी हैं, महिला प्रतिनिधि, युवा कार्यकर्ता, नागरिक अधिकार संगठन शामिल हैं. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने देश की अलग अलग जेलों में बंद 5500 से ज़्यादा तालिबानी उग्रवादियों को भी रिहा किया, जिससे देश के भीतर शांति बहाली की कोशिशों के लिए समर्थन जुटाया जा सके. इसके बाद, शांति वार्ता करने के लिए 21 सदस्यों का एक दल भी गठित किया गया. जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के तमाम तबक़ों और क्षेत्रों के लोगों को शामिल किया गया था. शांति वार्ता के लिए चुनी गई इस टीम में राजनेताओं के प्रतिनिधि, इस्लामिक विद्वान, महिलाएं, युवा और अफ़ग़ान समाज के अन्य सदस्य शामिल किए गए. 21 सदस्यों की इस टीम में चार महिलाएं भी हैं. अब ये टीम तालिबान से बात करने के लिए क़तर में है.
अफ़ग़ानिस्तान में भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा है
अफ़ग़ानिस्तान ने पिछले दो दशकों के दौरान सफलता के कई लंबे क़दम बढ़ाए हैं. इसके अलावा, अफ़ग़ानिस्तान के अंतरराष्ट्रीय सहयोगी देशों, ख़ास तौर से अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत ने भी अफ़ग़ानिस्तान की प्रगति में काफ़ी योगदान दिया है. युवा आबादी का लाभ उठाने के लिए अफ़ग़ानिस्तान ने अपनी मानव पूंजी की मदद से अपने नागरिकों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वो अफ़ग़ानी समाज में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करें. लोकतंत्र की बुनियादी धुरी मज़बूत की गई है. आज अफ़ग़ानिस्तान के लोग खुलकर राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं और सरकारी व्यवस्था को अराजक बनने से रोकने के लिए हर समय सक्रिय रहते हैं. आज, अफ़ग़ानिस्तान में सैकड़ों स्वतंत्र मीडिया संगठन काम कर रहे हैं. देश में सैकड़ों स्कूल और विश्वविद्यालयों में हर हिस्से से आने वाले छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. अफ़ग़ानिस्तान के समाज में महिलाओं की अब जैसी हिस्सेदारी है, वैसे देश में पहले कभी नहीं देखी गई थी. आज देश की संसद में 27 प्रतिशत सांसद महिलाएं हैं. स्कूलों और विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या कई गुना बढ़ गई है. आज अफ़ग़ानिस्तान की 83 प्रतिशत छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं. देश की GDP जो 2001 में महज़ 3 अरब डॉलर थी, वो वर्ष 2019 में 18 अरब डॉलर से ज़्यादा हो गई है. अफ़ग़ानिस्तान के सुरक्षा बल आज पेशेवर फ़ोर्स बन चुके हैं. जो युद्ध कला में अच्छे से प्रशिक्षित किए गए हैं. वो आधुनिक तकनीक वाले हथियारों से लैस हैं.
हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान की इस प्रगति में सबसे बड़ा योगदान उसके अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों का रहा है. इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता. भारत, अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा और सामरिक साझेदार देश है. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में तीन अरब डॉलर से अधिक का योगदान किया है. अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच आज केवल राजनीतिक और आर्थिक संबंध ही नहीं हैं. दोनों देश साझा मूल्यों और सांस्कृतिक संबंधों की पुरानी विरासत को भी आगे बढ़ा रहे हैं. दोनों के बीच ये बिल्कुल अनूठा संबंध है. भारत, अफ़ग़ानिस्तान के छात्रों की पढ़ाई में ख़ास तौर से योगदान दे रहा है. वो अफ़ग़ानिस्तान के चात्रों को वज़ीफ़ा देने जैसे कई योगदान दे रहा है. साल 2003 से लेकर अब तक 70 हज़ार से ज़्यादा अफ़ग़ानी छात्रों ने भारत में अपनी पढ़ाई पूरी की है. आज भी भारत के अलग अलग राज्यों में 17 हज़ार से अधिक अफ़ग़ानी छात्र पढ़ रहे हैं. यहां तक कि कोविड-19 की महामारी के मुश्किल दौर में भी भारत ने अफ़ग़ानिस्तान से दोस्ती को मज़बूत करने का काम किया था. जब भारत ने अफ़ग़ानिस्तान की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 75 हज़ार टन गेहूं की खेप वहां भेजी थी. इसके अलावा भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को ज़रूरी और अत्यंत महत्वपूर्ण दवाएं भी उपलब्ध कराई हैं.
भारत, अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा और सामरिक साझेदार देश है. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में तीन अरब डॉलर से अधिक का योगदान किया है. अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच आज केवल राजनीतिक और आर्थिक संबंध ही नहीं हैं. दोनों देश साझा मूल्यों और सांस्कृतिक संबंधों की पुरानी विरासत को भी आगे बढ़ा रहे हैं.
इसके अलावा भारत ने नए अफ़ग़ानिस्तान के माहौल को मज़बूत करने के लिए जो कोशिशें की हैं, उनका अफ़ग़ानिस्तान की जनता बहुत मान सम्मान करती है. क़तर में शांति वार्ता की शुरुआत के समय भारत ने ज़ोर देकर कहा था कि ये बातचीत अफ़ग़ानिस्तान की जनता द्वारा अपनी भलाई के लिए अपने नियंत्रण में होनी चाहिए. ये बात अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के किए बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि, अफ़ग़ान सरकार ने ही देश में बड़ा बदलाव लाने का काम किया है. एक आदर्श अफ़ग़ानिस्तान बनाने के लिए भारत, वहां की सरकार को जो सहयोग और समर्थन देता आ रहा है, वो ख़ुद भारत के नज़रिए से बहुत अहम है. क्योंकि इससे इस क्षेत्र में भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं कम होंगी. जैसे जैसे विश्व स्तर पर भारत का क़द बढ़ रहा है, उस लिहाज़ से अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली को अफ़ग़ानी जनता के हाथ में ही रहने देने वाली भारत के तर्क से न सिर्फ़ इस क्षेत्र यानी दक्षिण एशिया को, बल्कि पूरी दुनिया को लाभ होगा.
निष्कर्ष
तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान की नई ज़मीनी हक़ीक़त को स्वीकार करना ही होगा. अगर, तालिबान को वाक़ई अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति की मंज़िल तक पहुंचना है, तो उसे हिंसा पर क़ाबू पाकर, मानवीय आधार पर युद्ध विराम लागू करना ही होगा. ऐसा करके ही वो अफ़ग़ानिस्तान के समाज में ख़ुद को स्वीकार्य बना सकेंगे और नए अफ़ग़ानी समाज में वास्तविक नागरिकों के साथ घुल मिल सकेंगे. अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक गणराज्य के लिए संवैधानिक लोकतंत्र को सुरक्षित करना बेहद आवश्यक है. क्योंकि इससे अफ़ग़ान नागरिकों के अधिकारों, उससे संबंधित अन्य फ़ायदों और पिछले 19 वर्षों के दौरान हासिल की सफलताओं को संरक्षित किया जा सकेगा. अफ़ग़ानिस्तान में एक ऐसी शासन व्यवस्था की स्थापना, जो सभी नागरिकों को मंज़ूर हो, क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोगियों को स्वीकार्य हो, उससे इस मामले से जुड़े सभी भागीदारों का भला होगा. अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाली की वार्ता के लिए जिस तरह से विश्व स्तर पर सघन प्रयास किए गए हैं, वो अफ़ग़ान नागरिकों की आकांक्षाओं के ही अनुरूप हैं. इसकी कामयाबी से विश्व इतिहास में नया अध्याय जुड़ने की संभावना है. और इसके साथ अफ़ग़ानिस्तान एक बार फिर एक आर्थिक केंद्र बन जाएगा, जो मध्य और दक्षिण एशिया के बीच एक पुल का काम करेगा. जिसके ज़रिए अलग अलग क्षेत्रों के मूल्यों का आदान प्रदान होगा. विचारों का लेन देन होगा. और, वस्तुओं का व्यापार हो सकेगा. ऐसा हुआ तो अफ़ग़ानिस्तान ख़ुद को आपसी संघर्ष नहीं, बल्कि आपसी सहयोग के प्रतीक के तौर पर पेश कर पाएगा.
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