Author : Gurjit Singh

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 15, 2023 Updated 0 Hours ago

इससे पहले अफ्रीका का नेतृत्व कभी इतने छोटे द्वीपीय देश ने नहीं किया था, और इसलिए इससे बदलाव की लहर चली है और शायद छोटे विकासशील देशों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

अफ्रीकी संघ के 36 वें शिखर सम्मेलन का मूल्यांकन

 

अफ्रीकी संघ (AU) ने अपने 11वें वर्ष में 18 और 19 फरवरी 2023 को अदीस अबाबा में अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था. इस शिखर सम्मेलन की सबसे ख़ास बात, अफ्रीका के सबसे छोटे देशों में से एक और पूर्वी अफ्रीका की नुमाइंदगी करने वाले कोमोरोस के AU की अध्यक्षता करने की बारी थी.

कोमोरोस के राष्ट्रपति अज़ाली असूनामी को ये चुनौतीपूर्ण अध्यक्षता सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल की जगह पर मिली है, जिन्होंने पिछले साल पश्चिमी अफ्रीका के प्रतिनिधि के तौर पर अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की थी; उनसे ठीक पहले मध्य अफ्रीका से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो (DRC) के राष्ट्रपति शिसेकेडी और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामाफोसा, अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष रहे थे. अपेक्षा इस बात की अधिक थी कि पूर्वी अफ्रीका से इस बार कीनिया को अफ्रीकन यूनियन की अध्यक्षता मिलेगी. लेकिन शायद कीनिया के नए राष्ट्रपति रूटो ने अपने आपको पीछे रखना बेहतर समझा और उन्होंने ये मौक़ा कोमोरोस को दे दिया. अफ्रीका को इससे पहले इतने छोटे द्वीपीय देश ने कभी नेतृत्व प्रदान नहीं किया था, और इसी वजह से इससे बदलाव की एक लहर आई है और शायद छोटे विकासशील देशों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

इस साल अफ्रीका, कई अंतरराष्ट्रीय घटनाओं और उनके नतीजों के भवंर में फंसा हुआ है. यूक्रेन संकट के कारण अफ्रीका को कोविड-19 के बाद आर्थिक रिकवरी की चुनौती का मुश्किलों के साथ सामना करने को मजबूर किया है, क्योंकि ईंधन, खाद्य पदार्थों और उर्वरकों की आपूर्ति में खलल पड़ा है.

इस साल अफ्रीका, कई अंतरराष्ट्रीय घटनाओं और उनके नतीजों के भवंर में फंसा हुआ है. यूक्रेन संकट के कारण अफ्रीका को कोविड-19 के बाद आर्थिक रिकवरी की चुनौती का मुश्किलों के साथ सामना करने को मजबूर किया है, क्योंकि ईंधन, खाद्य पदार्थों और उर्वरकों की आपूर्ति में खलल पड़ा है. इसके साथ साथ, संयुक्त राष्ट्र (UN) में अफ्रीकी देशों पर वोट देने का दबाव पड़ा क्योंकि वहां अमेरिका और उसके साथी देशों ने रूस की आलोचना कर रहे थे. कई मौक़ों पर अफ्रीका ने संकट का सामना करने में आम सहमति की कमी का प्रदर्शन किया. 7 अप्रैल 2022 को रूस और मानव अधिकार परिषद के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट करने वाले 24 देशों में अफ्रीका के 9 देश शामिल थे; उस वक़्त मतदान से अनुपस्थित रहने वाले 16 देशों में से 11 अफ्रीका के थे; मतदान से अनुपस्थित रहने के 23 अवसरों के दौरान अफ्रीका के 58 देश गैरहाज़िर रहे थे. 23 फरवरी को शिखर सम्मेलन के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ 2 अफ्रीकी देशों ने विरोध में मतदान किया. 6 अनुपस्थित रहे और कुल 15 अनुपस्थितियों में से 32 अफ्रीका के देश थे. इसलिए, भले ही अफ्रीका एकजुट होने का इशारा दुनिया को करे, लेकिन, संकट से सामरिक रूप से मुक़ाबला करने के दौरान अफ्रीका एकजुट नहीं है. हालांकि, इस संकट से नतीजों से निपटने के प्रयासों में ज़रूर अफ्रीकी देशों ने एकजुटता दिखाई है.

अफ्रीकी संघ शिखर सम्मलेन

अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलन के दौरान अफ्रीका के साझीदारों की विविधता देखने को मिली, जो इसलिए प्रभाव जमाना चाहते हैं, क्योंकि दुनिया फिर बंटी हुई है. अफ्रीका के बहुत से देशों को अपने अंदरूनी संघर्षों और संकट के कारण तालमेल बिठाना पड़ रहा है. अनिश्चित वित्तीय भविष्य इन देशों की प्राथमिकताओं पर बड़ा सवालिया निशान लगा रहा है. अफ्रीकी संघ को ख़ुद अपनी व्यवस्थाओं और क्षमताओं पर नज़र डालनी होगी, ताकि वो इस अंतरराष्ट्रीय संकट का सामना उचित ढंग से कर सकें.

अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलन के कुछ महत्वपूर्ण नतीजे निकले हैं.

इसका ध्यान अफ्रीका महाद्वीप के मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) को जल्दी से लागू करने पर केंद्रित रहा था. AfCFTA के बारे में नाइजर के पूर्व राष्ट्रपति महमदू इसोफू की एक रिपोर्ट सम्मेलन में पेश की गई. मुक्त व्यापार क्षेत्र गाइडेड ट्रेड इनिशिएटिव (GTI) के ज़रिए एक प्रयोग कर रहा है, जिसे पिछले शिखर सम्मेलन में मंज़ूरी दी गई थी. इस प्रयोग में 8 देशों को 96 उत्पादों के व्यापार को फास्ट ट्रैक किया गया है. इसे शिखर सम्मेलन के थीम में शामिल करने के पीछे विचार ये था कि अपने प्रयासों के ज़रिए अफ्रीका की सबसे बड़ी पहल को राजनीतिक प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए. घाना में अफ्रीका प्रॉस्पेरिटी डायलॉग के ज़रिए इसे लागू करने में सुधारों के प्रयास किए गए थे. आयोजकों ने शिखर सम्मेलन में निष्कर्ष दस्तावेज़ और सम्मेलन के समझौते को प्रस्तुत किया था.

अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि, ‘अंदरूनी लचीलापन लाने वाली कई व्यवस्था को सक्रिय करना, अफ्रीका के भीतर एकजुटता, अफ्रीकी वित्तीय संस्थानों को तेज़ी से लागू करना, सभी को उन्नत प्रशासन से सहयोग देना मेरी नज़र में मुक्ति का रास्ता होगा.’ 

अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि, ‘अंदरूनी लचीलापन लाने वाली कई व्यवस्था को सक्रिय करना, अफ्रीका के भीतर एकजुटता, अफ्रीकी वित्तीय संस्थानों को तेज़ी से लागू करना, सभी को उन्नत प्रशासन से सहयोग देना मेरी नज़र में मुक्ति का रास्ता होगा.’ इसमें क़र्ज़ के संकट का उन्मूलन, रियायतों के बजाय ज़्यादा क़र्ज़ माफ़ कराने और चीन बनाम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विवाद में पड़ने से बचना, प्रमुख चिंताएं थी. अफ्रीका के कई देश, चीन के साथ सीधे तालमेल बिठाने में लगे हैं, क्योंकि चीन, अफ्रीका का सबसे बड़ा क़र्ज़ दाता देश है. AU के आयोग को वैश्विक वित्तीय संस्थानों के ढांचे में सुधार के लिए ब्रिजटाउन पहल में सक्रियता से भाग लेना ही चाहिए. अफ्रीका, संप्रभु गारंटी वाले क़र्ज़ से ज़्यादा बाज़ार से पूंजी जुटाने की अपनी क्षमता सुधारने के लिए अपनी खुद की रेटिंग एजेंसी भी बनाना चाह रहा है.

इसके अतिरिक्त, सदस्य देशों के बीच अंदरूनी मामलों को भी गंभीरता से उठाया गया. अफ्रीकी संघ से सूडान का निलंबन जारी है, माली, गिनी और बर्किना फासो को भी AU और पश्चिमी अफ्रीकी देशों के आर्थिक समुदाय से निलंबित रखा गया है. ये देश कट्टपंथी समूहों का सामना करने के साथ साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन के प्रबंधन को लेकर मुश्किल भविष्य की ओर ताक रहे हैं.

2023 में अफ्रीका के छह देशों में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं; फरवरी में नाइजीरिया में चुनाव हुए हैं. जून में सिएरा लियोन, अक्टूबर में लाइबेरिया, नवंबर में मैडागास्कर में और गैबोन और कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य में 2023 के अंत में चुनाव होने हैं लीबिया और दक्षिणी सूडान में चुनाव के लिए उपयुक्त माहौल नहीं बन सका है. चुनाव और उनका न होना, दोनों ही उस सौहार्द को बिगाड़ सकते हैं, जो अफ्रीकी संघ स्थापित करना चाहता है.

इस बार का शिखर सम्मेलन अधिक मैत्रीपूर्ण रहा था. हालांकि इसने सदस्य देशों के निलंबन को वापस नहीं लिया. लेकिन, जिन देशों में तख़्तापलट हुए हैं, उन पर प्रतिबंध लगाने पर भी ज़ोर नहीं दिया गया.

इथियोपिया और ख़ास तौर से टिगरे इलाक़े की समस्या अभी तक अनसुलझी है और कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य और रवांडा में M23 की समस्याओं के कारण पूर्वी अफ्रीकी बल को तैनात किया गया है; शांति और सुरक्षा परिषद ने इस अभियान के लिए पहली बार अपने शांति फंड के उपयोग को मंज़ूरी दी है. 40 करोड़ डॉलर के इस फंड में से 50 लाख डॉलर इस तैनाती के मद में ख़र्च किए जाएंगे, जो समस्या के समाधान का संकेत तो बिल्कुल नहीं है.

अफ्रीकी संघ द्वारा व्यक्त आशंकाओं के बावजूद अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अफ्रीका का स्थान महत्वपूर्ण है. यही वजह है कि AU के साझादीरों ने शिखर सम्मेलन के दौरान बैठकें कीं. भारत ने ये मौक़ा छोड़ दिया है. 2021 के बाद से अमेरिका और अफ्रीका के नेताओं का शिखर सम्मेलन, चीन अफ्रीका सहयोग का मंच, यूरोप अफ्रीका शिखर सम्मेलन, टोक्यो इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन अफ्रीकन डेवलपमेंट आयोजित की गयी. जून 2023 में रूस और अफ्रीका का शिखर सम्मेलन होना है. हो सकता है कि इस साल और भारत अफ्रीका का शिखर सम्मेलन भी हो. इन सम्मेलनों के दौरान अफ्रीका में निवेश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफ्रीका की मदद करने के वादे किए गए. क्या AU इन सम्मेलनों से पैदा हुई अपेक्षाओं का प्रबंधन कर सकता है?

जून 2023 में रूस और अफ्रीका का शिखर सम्मेलन होना है. हो सकता है कि इस साल और भारत अफ्रीका का शिखर सम्मेलन भी हो. इन सम्मेलनों के दौरान अफ्रीका में निवेश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफ्रीका की मदद करने के वादे किए गए.

अफ्रीकी संघ कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों में अपने लिए स्थान चाहता है. इसमें G20 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता हासिल करना शामिल है. सिएरा लियोन की अध्यक्षता वाली AU के दस देशों की समिति को 2005 से ही ये स्थान हासिल करने की ज़िम्मेदारी दी गई है. संयुक्त राष्ट्र के सुधारों पर एज़ुलविनी आम सहमति द्वारा अफ्रीका के लिए वीटो के अधिकार के साथ दो स्थायी और तीन अस्थायी सीटों की मांग की गई थी जो बनी हुई है. इसमें ये मांग भी की गई है कि इन स्थानों के सदस्य देश कौन होंगे इसका फ़ैसला संयुक्त राष्ट्र नहीं, बल्कि ख़ुद अफ्रीका करे. ज़ाहिर है कि इस मांग की पूर्ति में कोई प्रगति नहीं हो रही है. अब 10 देशों की समिति को G20 से स्थायी सदस्यता का आमंत्रण हासिल करने की ज़िम्मेदारी भी सौंप दी गई है. इस वक़्त AU के अध्यक्ष, जो अभी कोमोरोस के राष्ट्रपति हैं और अफ्रीकी संघ आयोग (AUC) के अध्यक्ष G20 की बैठकों में शामिल होते हैं. सम्मेलन में उनके G20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने को मंज़ूरी दी गई.

आम तौर पर अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलन में न्यू पार्टनरशिप फॉर अफ्रीकाज़ डेवलपमेंट (NEPAD) के लिए आमंत्रण दिया जाता है. लेकिन, चूंकि अब ये AU का एक विभाग (AUDA-NEPAD) बन गया है, तो आम तौर पर ये जगह AUC के अध्यक्ष को ही मिलती है. मूल रूप से ये स्थान 2012 तक इथियोपिया के प्रधानमंत्री रहे मेलेस ज़ेनावी के लिए बनाई गई थी, जो NEPAD के दूरदर्शी प्रमुख रहे थे. वैसे तो चीन और अमेरिका, अफ्रीकी संघ को सदस्य बनाने का समर्थन करते हैं, क्योंकि यूरोपीय संघ भी एक सदस्य है. लेकिन, अब तक वो दोनों AU की सदस्यता का दर्जा बढ़ाने के लिए आम सहमति बनाने की दिशा में आगे नहीं बढ़े हैं, क्योंकि इससे उन सदस्यों की महत्वाकांक्षा भी बढ़ जाएगी, जो अभी G20 के मेहमानों की सूची में है.

जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन से सबसे कम प्रभावित अफ्रीका अब जलवायु परिवर्तन का क़हर झेल रहा है और उसे इससे निपटने की आवश्यकता है.’ पिछला जलवायु सम्मेलन (COP27) मिस्र में आयोजित किया गया था. अगर इस सम्मेलन से विश्व को निराशा मिली, तो अफ्रीका के ऐसा महसूस करने की तो और भी वजह बनती है. अफ्रीका का मानना है कि जलवायु के मसले पर उसके पार एक दृष्टिकोण है और अफ्रीकी ग्रीन बैंक को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में मदद करता है. सच तो ये है कि अफ्रीका की हरित पट्टी उन कमियों की भरपाई करती है, जो पिछले कई वर्षों के दौरान जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार देश नहीं दूर कर पाए हैं. हर साल अफ्रीका के कॉन्गो बेसिन में जो कार्बन सोखा जाता है, उससे दुनिया पर अफ्रीका का 55 खरब डॉलर का क़र्ज़ चढ़ जाता है. कॉन्गो बेसिन, दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन सिंक है. ये मध्य अफ्रीका के छह देशों में फैला हुआ है. लेकिन, कभी भी इसके बदले में पैसे कमाने के प्रयास नहीं किए गए हैं. इसकी बड़ी वजह स्पष्ट दृष्टिकोण का अभाव और इस चुनौती का इस्तेमाल करके अधिक प्रत्यक्ष जलवायु वित्त प्राप्त करने की क्षमता का अभाव है.

निष्कर्ष

शिखर सम्मेलन के साथ साथ अफ्रीकी संघ की जलवायु परिवर्तन पर समिति की बैठक भी हुई. कीनिया के राष्ट्रपति रूटो ने नवीनीकरण योग्य ऊर्जा और हरित तकनीकों के लिए प्रचुर मात्रा में उपलब्ध खनिजों की अफ्रीकी क्षमता का सदुपयोग करने की बात कही. विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम को उनका सीधा संदेश ये था कि, ‘या तो अफ्रीकी तरीक़ा अपनाओ या नष्ट हो जाओ!’ शिखर सम्मेलन में कमीशन ऑन स्माल आइलैंड स्टेट्स ऑन क्लाइमेट चेंज ऐंड इंटरनेशनल लॉ ऐट द इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ ऑफ द सी द्वारा शुरू की गई कार्रवाई में शामिल होने का समर्थन किया. ये प्रक्रियाएं दिसंबर 2022 में शुरू की गई थी. एक न्यायोचित परिवर्तन का स्वागत करते हुए, शिखर सम्मेलन ने नुक़सान एवं क्षति के फंड को तुरंत सक्रिय बनाने की मांग की. अफ्रीकी संघ ने कॉन्गो के उस प्रस्ताव का भी स्वागत किया जिसमें 2023 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वनीकरण के अफ्रीकी एवं वैश्विक दशक शुरू करने की मांग की गई है.

शिखर सम्मेलन में अन्य विषयों के अतिरिक्त, अफ्रीकी संघ में संस्थागत सुधारों पर रिपोर्ट पर भी विचार किया गया. ये रिपोर्ट रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे ने पेश की थी. इसके अलावा सम्मेलन के दौरान, शांति एवं सुरक्षा परिषद पर रिपोर्ट; वैश्विक राजनीतिक, वित्तीय और ऊर्जा नीति प्रशासन पर सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल की रिपोर्ट, और वैश्विक खाद्य संकट पर रिपोर्ट को लेकर भी चर्चा हुई. सम्मेलन के दौरान सिएरा लियोन के राष्ट्रपति जूलियस माडा बायो की अफ्रीकन पीयर रिव्यू मैकेनिज़्म में भाग ले रहे नेताओं के मंच की रिपोर्ट, AUDA-NEPAD की रिपोर्ट और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों पर AU की दस सदस्यों की समिति की रिपोर्ट पर भी विचार किया गया.

शिखर सम्मेलन में अन्य विषयों के अतिरिक्त, अफ्रीकी संघ में संस्थागत सुधारों पर रिपोर्ट पर भी विचार किया गया. ये रिपोर्ट रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे ने पेश की थी.

अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष ने इस साल अफ्रीकी एकता संगठन की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ और इसके साथ साथ एजेंडा 2063 के पहले दशक को मनाने का भी ऐलान किया गया. ये आयोजन 2022 में AU की 20वीं सालगिरह के बाद हो रहा है. अफ्रीकी संघ को अपने साझेदारों, जो उसके मुख्य वित्तीय मददगार हैं, से ये अपेक्षा है कि वो एजेंडा 2063 पूरा करने में मदद करें, न कि अपने निजी लक्ष्य हासिल करने के लिए काम करें. बरसों के प्रयासों के बावुजूद अफ्रीकी संघ का 66 प्रतिशत बजट अभी भी दानदाताओं से ही आता है. ऐसा लगता है कि AU, पश्चिमी अफ्रीकी देशों के आर्थिक समुदाय के उदाहरण को अपनाने के लिए अनिच्छुक है, जो अपनी गतिविधियों के लिए अपने सदस्यों के आयात पर 0.2 प्रतिशत का टैक्स लगाता है.

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