Author : Sayantan Haldar

Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 06, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में यूरोपीय देशों और भारत के हित एकजुट होने में बंगाल की खाड़ी की समुद्री सुरक्षा आधार साबित हो सकती है.

भारत यूरोप और बंगाल की खाड़ी: एकजुट होते समुद्री सुरक्षा हित

हाल के वर्षों में, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम (यूके), जर्मनी और इटली जैसे कई प्रमुख यूरोपीय देशों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में भारत के साथ अपने संबंधों को पुख़्ता किया है. एक ओर जहां हिंद महासागर की समुद्रिक स्थिति अथवा समुद्री भूगोल में यूरोप में समान विचारधारा वाले सहयोगियों के साथ भारत के संबंध मज़बूत हुए है, वहीं दूसरी ओर नई दिल्ली की सुरक्षा और रणनीतिक हितों की गणना के लिए अहम बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र भारत और यूरोपीय सहयोगियों के बीच संबंधों की दृष्टि से हाशिये पर ही है. यहां इस तर्क पर बातचीत की जा रही है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार और कनेक्टिविटी पर बढ़ते ध्यान के साथ ही यूरोपीय सहयोगियों का भी बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों की ओर ध्यान बढ़ने लगा है. इसकी वज़ह से इन तटीय देशों और यूरोपीय देशों के बीच संबंधों में सुधार हुआ है. ऐसे में इन देशों के बीच संबंधों को पुख़्ता करने में बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा ही भारत और यूरोप के बीच सहमति के लिए अहम साबित होने की संभावना है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बंगाल की खाड़ी, जो दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी भी है, इस क्षेत्र के संदर्भ में तेजी से आर्थिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभर रही है. ऐसे में अब बंगाल की खाड़ी को लेकर भारत की ओर से उठाए जाने वाले कदम अथवा उसके सहयोगियों के साथ संवाद को तेजी से भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दृष्टिकोण के प्रमुख चालक के रूप में देखा जा रहा है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी की स्थिति

इंडो-पैसिफिक अर्थात हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती हुई भू-राजनीति को आकार देने में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र तेजी से एक महत्वपूर्ण थिएटर अर्थात हिस्सा बनकर उभरा है. यह भारत और दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ने वाला क्षेत्र है. अर्थात ऐसी दो धुरियां, जिसके चारों ओर हिंद-प्रशांत की भू-राजनीति आकार लेती है. हिंद महासागर में भारत और थाईलैंड के बीच बंगाल की खाड़ी स्थित है, जबकि बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देश इस क्षेत्र के प्रमुख तटीय देश है. ये देश एक बड़े वैश्विक बाज़ार और अर्थव्यवस्था को अपने आप में समेटे हुए बैठे है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बंगाल की खाड़ी, जो दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी भी है, इस क्षेत्र के संदर्भ में तेजी से आर्थिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभर रही है. ऐसे में अब बंगाल की खाड़ी को लेकर भारत की ओर से उठाए जाने वाले कदम अथवा उसके सहयोगियों के साथ संवाद को तेजी से भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दृष्टिकोण के प्रमुख चालक के रूप में देखा जा रहा है. भारत ने हाल ही में इस क्षेत्र में एक क्षेत्रीय समूह क्वॉड, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल है, के साथ अपने नौसैनिक संबंधों को मज़बूत किया है. ऐसे में यह बात हिंद-प्रशांत संदर्भ में इस क्षेत्र के व्यापक महत्व को उजागर करती है. इसके विपरीत, बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोप की भागीदारी के मामले में अब भी हशिए पर ही दिखाई देता है.

यूरोप और बंगाल की खाड़ी

यूरोप की रणनीतिक गणना में बंगाल की खाड़ी कोई नया समुद्रिक क्षेत्र अथवा हिस्सा नहीं है. ऐतिहासिक रूप से, यूरोपीय ताकतों ने जब बंगाल की खाड़ी से इस क्षेत्र में अपनी पहुंच स्थापित की थी तब ही इस क्षेत्र को वैश्विक बाज़ारों से जुड़ने का अवसर हासिल हुआ था. हाल ही में, इंडो-पैसिफिक को एक एकीकृत स्थान के रूप में स्वीकृत किए जाने के साथ ही यूरोप अब इस क्षेत्र में बड़ी तेजी से अपने व्यापार, कनेक्टिविटी और अंतत: समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित हितों को देखने लगा है. किसी जमाने में इस क्षेत्र में एक औपनिवेशिक शक्ति होने के नाते फ्रांस अब ख़ुद को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थानीय निवासी की शक्ति के रूप में देखे जाने की कोशिश कर रहा है. इसी वज़ह से वह क्षेत्र के भौगोलिक विस्तार के साथ अपनी सामरिक गणना को संरेखित करना चाह रहा है. अत: उन क्षेत्रों का मानचित्रण किया जाना अहम हैं, जो बंगाल की खाड़ी में भारत और उसके यूरोपीय सहयोगियों के बीच के हितों को एक बिंदु में पिरोने में अहम साबित हो सकते है. ऐसा होने पर ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दोनों पक्षों का दृष्टिकोण मज़बूत होने की संभावना है. इसे देखते हुए ही यह तर्क दिया जा सकता है कि हिंद-प्रशांत में व्यापार और कनेक्टिविटी पर बढ़ते ध्यान की वज़ह से ही यूरोपीय सहयोगी, बंगाल की खाड़ी पर ध्यान केंद्रित करेंगे, ताकि वे क्षेत्रीय तटीय देशों के साथ अपने संबंधों को पुख़्ता कर सकें. इस बात को ध्यान में रखते हुए भी यूरोपीय सहयोगियों को इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना ज़रूरी होगा. ऐसा होने पर ही ये देश अपने हितों को भारत के हितों के साथ एकजुट कर सकेंगे.

समुद्री सुरक्षा हितों के एकजुट अथवा अभिसरण के दायरे का पता लगाना

जैसे-जैसे भारत अपने हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण को मज़बूत कर रहा है, वैसे-वैसे बंगाल की खाड़ी का महत्व कई गुना बढ़ता जा रहा है. भारत ने अपने हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण रूप से आसियान को केंद्र में रखा है. ऐसे में बंगाल की खाड़ी को दक्षिण पूर्व एशिया के साथ जुड़ने में ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंधों और हाल ही में, भारत द्वारा स्थापित सामरिक पूरकताओं के कारण एक महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र के रूप में देखा जाना अनिवार्य हो गया है.

इसके अलावा, हिंद-प्रशांत संदर्भ में, भारत और यूरोप ने रणनीतिक अभिसरण स्थापित करने की दिशा को पहचान कर इस पर अमल करना शुरू कर दिया है. इस क्षेत्र की ओर यूरोप का ध्यान केंद्रित होने के साथ ही इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा भी अब यूरोपीय ताकतों की नीतियों में काफ़ी स्थान पाने में सफ़ल होने लगी है. भारत खाड़ी को सुरक्षित करने का इच्छुक है. ऐसे में इस क्षेत्र को व्यापार और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने की कोशिश में जुटी यूरोपीय शक्तियों को भी खाड़ी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी क्योंकि उनकी दृष्टि से यह क्षेत्र अब अहम होता जा रहा है.

भारत के अधिकांश आर्थिक, सांस्कृतिक और वैचारिक आदान-प्रदान बंगाल की खाड़ी के माध्यम से ही सुगम हो सके हैं. आज भी, पूर्वी तट पर भारत की समुद्री सीमाएं भारत के बढ़ते समुद्री-वाहित व्यापार की दृष्टि से अहम है.

बंगाल की खाड़ी के साथ भौगोलिक अनिवार्यता की दृष्टि से भारत के लिए संवाद अहम है. ऐतिहासिक रूप से, भारत के अधिकांश आर्थिक, सांस्कृतिक और वैचारिक आदान-प्रदान बंगाल की खाड़ी के माध्यम से ही सुगम हो सके हैं. आज भी, पूर्वी तट पर भारत की समुद्री सीमाएं भारत के बढ़ते समुद्री-वाहित व्यापार की दृष्टि से अहम है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंद महासागर में भारत और चीन के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा तेज होने की वज़ह से भी बंगाल की खाड़ी के भारत के लिए एक महत्वपूर्ण समुद्री भूगोल अर्थात क्षेत्र के रूप में उभरने की संभावना है. चीन की भारत के तटीय पड़ोस, विशेषत: श्रीलंका, बांग्लादेश और म्यांमार में विकासात्मक परियोजनाओं में भागीदारी ने नई दिल्ली की चिंताओं को बढ़ा दिया है. इसी वज़ह से भारत के लिए समुद्री सुरक्षा तत्काल प्राथमिकता बन गई है. इसी वज़ह से नई दिल्ली की ओर से बंगाल की खाड़ी में समान विचारधारा वाले साझेदार देशों के साथ समुद्री अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करना अहम साबित होता है. इसके साथ ही भारत ने अब अपने समुद्री पड़ोस में अपनी पहुंच को बढ़ाने के लिए नौसैनिक कूटनीति को एक प्रमुख उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. ऐसे में यह साबित हो जाता है कि बंगाल की खाड़ी को सुरक्षित करने को लेकर भारत कितना की सोच कितनी संजीदा है. वह इस क्षेत्र पर गंभीरता के साथ अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की आर्थिक क्षमता इस क्षेत्र के साथ इसके यूरोप के संबंध पुख़्ता करने की कोशिशों के केंद्र में है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा संघर्ष लंबा चलने की वज़ह से यूरोप वर्तमान में संकट के दौर से गुजर रहा है. इस युद्ध का प्रभाव, विशेषत: आर्थिक प्रभाव सारी दुनिया पर देखने को मिल रहा है. ख़ासकर ऊर्जा की कीमतों में लगातार चल रहे उतार-चढ़ाव को सब लोग महसूस कर रहे हैं. ऐसे में यूरोप के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वह अपने संबंधों को अन्य इलाकों में भी मज़बूत बनाए. विशेषतः व्यापार, खाद्यान्न सुरक्षा एवं ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में ऐसा किया जाना आवश्यक हो गया है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के 'बढ़ते आर्थिक, जनसांख्यिकीय और राजनीतिक वजन' के कारण यूरोपीय संघ ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को 'अहमक्षेत्र के रूप में परिभाषित किया है. लेकिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आने वाली बंगाल की खाड़ी जैसा अहम रणनीतिक क्षेत्र यूरोप के हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपनाए गए दृष्टिकोण से नदारद ही रहा है. लेकिन अब जब यूरोप अपने हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए बंगाल की खाड़ी के तटीय देशों के साथ अपने संबंधों को गहरा और विस्तारित कर रहा है तो उसे अपने दृष्टिकोण में मौजूद इस ख़ामी पर भी ध्यान देकर उसे दूर करने की कोशिश करनी होगी.

प्रमुख यूरोपीय ताकतों में फ्रांस एकमात्र ऐसा देश है, जिसने इंडो-पैसिफिक में बंगाल की खाड़ी के रणनीतिक थिएटर अर्थात क्षेत्र में प्रवेश किया है. यह भी सच ही है कि तार्किक रूप से, अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत ने अब तक फ्रांस के साथ ही सबसे बड़ा तालमेल स्थापित किया है. 2021 में, भारत और फ्रांस ने ला पेरोस अभ्यास में बंगाल की खाड़ी में समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में इसका प्रदर्शन किया जिसमें भारत पहली बार शामिल हुआ था. इसे भारत की बंगाल की खाड़ी में समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र को दी जाने वाली अहमियत का सबूत समझा जा सकता है. फ्रांस की अगुवाई में आयोजित इस नौसैनिक अभ्यास में बंगाल की खाड़ी में चार क्वाड देशों ने एक साथ जटिल और उन्नत नौसैनिक ऑपरेशन्स में हिस्सा लिया था. इस अभ्यास के दौरान उच्च स्तर के समन्वय और पारस्परिकता का प्रदर्शन किया गया था. इसके अलावा, 2023 में, बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में हुए ला पेरोस में यूके ने भी शिरकत की थी.

इस विश्लेषण के लिए, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के तीन प्रमुख देशों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है. इसमें फ्रांस, यूके और इटली का समावेश हैं. इन तीनों देशों और भारत के बीच अभिसरण अथवा सहमति के कुछ संभावित क्षेत्रों पर इस संदर्भ में विचार किया जा सकता है.

  1. फ्रांस, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का प्रमुख यूरोपीय सहयोगी रहा है. भारत की ओर से अब नौसैनिक कूटनीति पर बल दिए जाने को देखते हुए पिछले कुछ वर्षों में भारत-फ्रांस के बीच नौसैनिक संबंधों में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है. 2021 से, भारत और फ्रांस ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ला पेरोस में भाग लेकर बंगाल की खाड़ी में समुद्री सुरक्षा को लेकर सहयोग का सबूत भी दिया है. इस संयुक्त अभ्यास की वज़ह से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा संरचना में इसी मुद्दे को लेकर सहयोग के लिए अन्य देश भी आकर्षित हो सकते है. बंगाल की खाड़ी पर अब ध्यान देने वालों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. अर्थात यह वैश्विक रणनीति के केंद्र में आता जा रहा है. इस क्षेत्र में अपनी ही तरह की अद्वितीय समुद्री सुरक्षा चुनौतियां भी है. इन चुनौतियों में जलवायु संकट, समुद्री आतंकवाद तथा समुद्री डकैतों से जुड़ी गैर पारम्परिक समुद्री चुनौतियां भी शामिल है. अत: ये चुनौतियों ही बंगाल की खाड़ी में भारत तथा यूरोप और क्वॉड देशों के बीच इस क्षेत्र में बढ़ती सहमति के पीछे अहम भूमिका निभाएंगी.
  1. इंडो-पैसिफिक में यूके की भागीदारी को 2021 में ‘‘ग्लोबल ब्रिटेन इन ए कॉम्पिटिटिव ऐज’’, और बाद में ‘‘इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023’’दस्तावेज़ में रेखांकित किया गया था. लेकिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए यूके के विजन डॉक्यूमेंट में बंगाल की खाड़ी का कोई उल्लेख देखने को नहीं मिलता. हालांकि भारत और आसियान के साथ यूके के सहयोग में वृद्धि के बाद अब यूके का ध्यान बंगाल की खाड़ी पर केंद्रित होने में सहायता मिलेगी. यूके ने बंगाल की खाड़ी में सक्रिय देशों के साथ अपने सहयोग को काफ़ी तेजी से बढ़ाना शुरू कर दिया है. यूके ने सिंगापुर में ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट का एक नया हब शुरू करने के साथ ही 2022 में आसियान के साथ अपने संबंधों के स्तर को बढ़ा लिया है. यूके अब आसियान का डायलॉग पार्टनर अर्थात संवाद सहयोगी बन गया है. इसके अतिरिक्त, भारत और यूके 2021 में भारत-यूके रोडमैप 2030 के साथ 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' को लेकर भी सहमत हो गए है. 2023 के विजन डॉक्यूमेंट में भारत के साथ अभिसरण अर्थात सहयोग को लेकर यूके ने कुछ प्रमुख क्षेत्रों की बात की है. इसमें भारत के साथ रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को बढ़ाना, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मिलकर काम करने को बढ़ावा देना शामिल है. इसी प्रकार यूके भारत के हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर ओशन इनिशिएटिव में समुद्री सुरक्षा को एक अहम स्तंभ मानकर सहयोग को बढ़ावा देने पर भी सहमत हो गया है. अत: इस दिशा में, यह ध्यान देने योग्य है कि खाड़ी के प्रमुख देशों के साथ लंदन के बढ़ते सहयोग को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यूके के लिए इस क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा अब प्राथमिकता बनती चली जाएगी.
  2. हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े दिशा-निर्देशों में नवीनतम यूरोपीय प्रवेशकर्ता इटली है. मार्च 2023 में इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी की भारत यात्रा ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकसित हो रही भू-राजनीति और क्षेत्र में आगामी आर्थिक क्षमता के उपयोग करने को लेकर रोम की गहरी रुचि को उजागर किया है. इटली ने हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसका हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दृष्टिकोण क्या रहेगा. लेकिन एशिया के अपने सहयोगियों के साथ रोम का आर्थिक संवाद यह दर्शाता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर उसकी नीति इस पर ही आधारित होगी. जहां तक भारत के साथ इटली के संबंधों का सवाल है तो इटली यूरोपीय संघ से भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है. हालांकि भारत और इटली के बीच मज़बूत संबंधों का एक अहम आयाम भारत-इटली-जापान के बीच 2021 में आरंभ हुआ त्रिपक्षीय सहयोग हैं. जापान ने भी अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र के तहत बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में वापसी कर ली है. भारत और जापान दोनों मिलकर बंगाल की खाड़ी पर ध्यान केंद्रित करने वाले प्रमुख रणनीतिक साझेदार हैं. इसके अलावा बांग्लादेश, म्यांमार तथा श्रीलंका की कुछ विकास परियोजनाओं में जापान एक अहम साझेदारी और सहयोगी है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी ही जापान और भारत के बीच सहयोग के केंद्र में शामिल है. इटली और जापान ने भी अपने संबंधों को एक 'रणनीतिक साझेदारी' तक बढ़ाकर अपने द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की है. इसी तरह, हिंद-प्रशांत में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए इटली के लिए भारत-इटली-जापान त्रिपक्षीय एक रणनीतिक बिंदु साबित होने की संभावना है. बंगाल की खाड़ी में व्यापार और कनेक्टिविटी के पहलू पर बढ़ रहा ध्यान यह सुनिश्चित करेगा कि इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को अब प्राथमिकता दी जाए.

यूरोपीय ताकतों के ऐतिहासिक अतीत और उनके पूर्ववर्ती औपनिवेशिक विस्तार के दौरान निभाई गई भूमिका की वज़ह से हिंद महासागर की भू-राजनीति पर पड़े व्यापक प्रभाव को देखते हुए यूरोप के नीति निर्माताओं को इस क्षेत्र के लिए अपनी नीति तैयार करते वक्त उपरोक्त बातों को ध्यान में रखना चाहिए. इसी प्रकार उन्हें भारत के साथ अपने संबंध बढ़ाने को लेकर भी उपरोक्त बातों पर ध्यान देना चाहिए.

निष्कर्ष

बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में यूरोप की उपस्थिति नगण्य बनी हुई है. लेकिन अब हिंद-प्रशांत पर यूरोप के बढ़ते ध्यान और भारत और बंगाल की खाड़ी के अन्य तटीय देशों के साथ बढ़ते सहयोग को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यूरोपीय देशों के लिए भी अब खाड़ी को प्राथमिकता देने वाली नीति पर गंभीरता से विचार करना होगा. भारत के लिए खाड़ी की भौगोलिक अहमियत को देखते हुए इस क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा उच्च दर्जे की प्राथमिकता बनी रहेगी. लेकिन अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को देखते हुए यूरोप के लिए भी बंगाल की खाड़ी धीरे-धीरे महत्वपूर्ण साबित होने की संभावना है. बंगाल की खाड़ी का सामरिक माहौल भारत और यूरोपीय देशों के लिए अलग-अलग प्रकार की चिंताएं पैदा करता है. लेकिन इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने की आवश्यकता अब क्षेत्र को लेकर दोनों पक्षों के रणनीतिक दृष्टिकोणों के केंद्र में है.

हालांकि, यूरोपीय ताकतों के ऐतिहासिक अतीत और उनके पूर्ववर्ती औपनिवेशिक विस्तार के दौरान निभाई गई भूमिका की वज़ह से हिंद महासागर की भू-राजनीति पर पड़े व्यापक प्रभाव को देखते हुए यूरोप के नीति निर्माताओं को इस क्षेत्र के लिए अपनी नीति तैयार करते वक्त उपरोक्त बातों को ध्यान में रखना चाहिए. इसी प्रकार उन्हें भारत के साथ अपने संबंध बढ़ाने को लेकर भी उपरोक्त बातों पर ध्यान देना चाहिए. इसके अलावा भारत के साथ-साथ यूरोप में नीति निमार्ताओं को हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी की रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ बैठक को भी गंभीरता से देखना चाहिए. क्योंकि इसकी वज़ह से ही चीन-रूस के बीच एक धुरी का निर्माण होने की संभावना है.

इसके बावजूद, हिंद-प्रशांत पर यूरोप के बढ़ते रणनीतिक ध्यान और क्षेत्रीय देशों के साथ उसके गहराते सहयोग को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि बंगाल की खाड़ी में समुद्री सुरक्षा निश्चित रूप से यूरोपीय देशों और भारत के बीच अभिसरण का आधार बनने वाली है.

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