अप्रैल 2020 के आखिर तक जितने व्यापक स्तर पर स्कूल बंद हुए, आधुनिक इतिहास में वैश्विक समुदाय ने वैसा मंज़र कभी भी नहीं देखा था. 190 देशों के 90 प्रतिशत से अधिक छात्रों की स्कूल में पढ़ाई बाधित हो चुकी थी. इस संकट से निपटने के लिए जो शुरुआती आपात कदम उठाए गए, उन्हें लागू करना चुनौतीपूर्ण था. वे कदम पर्याप्त भी नहीं थे. ख़ासतौर पर उन्हें निम्न आय वर्ग (लोअर इनकम यानी एलआईसी) और निम्न-मध्यम आय वर्ग वाले देशों (एलएमआईसी) में लागू करना और भी दिक्कत भरा था. दूर से छात्रों को पढ़ाने के कई उपाय किए गए और उनकी मदद से शिक्षण का काम जारी रहा, लेकिन जरूरी जन-सेवाओं जैसे- गर्म खाना, हेल्थकेयर, मानसिक सहयोग सहित अन्य राहत कार्यों में भूमिका निभाने में स्कूलों को परेशानी हुई. कई शोध में इससे छात्रों पर व्यक्तिगत स्तर पर असर पड़ने का अंदेशा लगाया गया है. इनमें शिक्षा-दीक्षा में आई इस बाधा के सामाजिक असर की बात भी कही गई है. इससे यह बात एक बार फिर साबित हुई है कि शिक्षा व्यवस्था का 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी यानी सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स) हासिल करने में कितना महत्वपूर्ण योगदान है. हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण देश के अंदर और अलग-अलग देशों के बीच असमानता बढ़ने से सभी के लिए गुणवत्ता भरी शिक्षा सुनिश्चित करने की राह में नई बाधाएं खड़ी हो गई हैं. इससे एसडीजी 4 लक्ष्यों को हासिल करने में भी दिक्कत पेश आएगी.
इस वैश्विक संकट ने भारी चुनौतियां पेश की हैं, खासतौर पर विकासशील और पिछड़े देशों के लिए. कोविड-19 महामारी के कारण इन देशों की आपात स्थितियों और रिकवरी के लिए शिक्षा नीतियां बनाने और उन्हें डिलीवर करने की क्षमता प्रभावित हुई है. महामारी के कारण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक बंदिशें और सामाजिक संकट के कारण इस मद में उनका बजट भी प्रभावित हो सकता है. इसलिए अदीस अबाबा इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस फॉर फाइनेंसिंग डिवेलपमेंट में जो वादे 2030 तक एसडीजी 4 लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किए गए थे, उन पर विशेष तौर पर गौर करने की जरूरत है. जी-20 के देश ओईसीडी डेवेलपमेंट असिस्टेंस कमिटी (डीएसी) में वित्तीय सहयोग करते हैं. उनके सामने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए संसाधन जुटाने की चुनौती है. हालांकि, 2030 अजेंडा से 9 साल पहले जी-20 समूह को मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों की खातिर लंबी अवधि में शैक्षणिक रिकवरी के लिए वित्तीय संसाधनों को लेकर राजनीतिक स्तर पर ध्यान देने की पहल करनी होगी, जबकि अभी तक उनका ध्यान इस संकट से निपटने के शुरुआती उपायों पर ही रहा है. शिक्षा नीति को प्राथमिकताओं में शामिल करने और एसडीजी 4 लक्ष्यों को हासिल करने की खातिर वित्तीय संसाधन मुहैया कराने की आवाज उठाने का मतलब है कि इन देशों को इस मद में अच्छी-खासी रकम देनी होगी.
कोविड-19 महामारी के कारण देश के अंदर और अलग-अलग देशों के बीच असमानता बढ़ने से सभी के लिए गुणवत्ता भरी शिक्षा सुनिश्चित करने की राह में नई बाधाएं खड़ी हो गई हैं. इससे एसडीजी 4 लक्ष्यों को हासिल करने में भी दिक्कत पेश आएगी.
शिक्षा नीति हो प्राथमिकता
2018 में जब अर्जेंटीना के पास अध्यक्षता थी, तब आधिकारिक तौर पर शिक्षा को लेकर स्वतंत्र कार्यसमूह जी-20 में बनाया गया था. इससे इस समूह के अंदर शिक्षा नीति को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर चर्चा करने के लिए अलग मंच मिला. इसके साथ जी-20 के एंगेजमेंट समूहों, जैसे कि थिंक20, यूथ20 और सिविल20 के अंदर शिक्षा को लेकर पहल करने का रास्ता खुला. इसके अलावा, कार्यसमूह के बनने से वैश्विक शिक्षा नीति पर शिक्षा मंत्रियों की आधिकारिक बैठकों, सम्मेलनों और दूसरे आयोजनों में नए अंतरराष्ट्रीय विमर्श को भी बढ़ावा मिला. 2018 में वर्किंग ग्रुप बनना इस मंच के लिए एक अहम मोड़ साबित हुआ. इसके बाद अर्जेंटीना 2018, जापान 2019 और सऊदी अरब 2020 की अध्यक्षता में जो घोषणाएं हुईं, उनसे शैक्षणिक नीतियों को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने पर ध्यान गया. इसी तरह से थिंक20 के टास्क फोर्सेज जैसे एंगेजमेंट समूहों की ओर से जारी घोषणापत्र और जानकारों की ओर से पेश नीति संबंधित दस्तावेजों से शिक्षा की पहुंच बढ़ाने और उसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए कई सुझाव आए. इनमें बच्चों में शुरुआती विकास, डिजिटल माध्यमों तक पहुंच और उनके इस्तेमाल, एसटीईएम डिसिप्लिन और लड़कियों की शिक्षा जैसी कई बातें शामिल थीं. थिंक20 एक अहम एंगेजमेंट समूह है क्योंकि इसके तहत थिंक टैंक और रिसर्च सेंटर आते हैं. 2021 में इटली की अध्यक्षता में भी जी-20 समूह इस रास्ते पर आगे बढ़ा. तब समूह ने अत्यधिक समावेशी समाज बनाने के लिए शिक्षा तक पहुंच को महत्वपूर्ण माना. यह पहल ‘पीपल’ पिलर के तहत की गई.
थिंक20 एक अहम एंगेजमेंट समूह है क्योंकि इसके तहत थिंक टैंक और रिसर्च सेंटर आते हैं. 2021 में इटली की अध्यक्षता में भी जी-20 समूह इस रास्ते पर आगे बढ़ा. तब समूह ने अत्यधिक समावेशी समाज बनाने के लिए शिक्षा तक पहुंच को महत्वपूर्ण माना.
कोविड-19 महामारी ने कई नई चुनौतियां पेश की हैं, जिनके कारण इन प्राथमिकताओं को पूरा करना और एसडीजी 4 लक्ष्यों को 2030 तक हासिल करना मुश्किल हुआ है. मार्च 2020 से मार्च 2021 के बीच दुनिया भर में औसतन 6.7 महीने तक स्कूल बंद रहे. इससे शैक्षणिक नुकसान की कुल लागत और इस समूह की आमदनी पर जो चोट पहुंची, उससे आर्थिक और सामाजिक रिकवरी के मोर्चे पर मुश्किलें खड़ी हुईं. निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, हाशिये पर पड़े समूहों के छात्रों और कम पढ़े-लिखे अभिभावकों के बच्चों पर इस शैक्षणिक नुकसान का कहीं अधिक असर हुआ. वैश्विक स्तर पर इससे मैक्रो-इकनॉमी पर बहुत ज्यादा असर पड़ने की आशंका है. कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूलों के बंद रहने से एलआईसी में 364 अरब डॉलर के ताजिंदगी नुकसान होने का अनुमान है. मध्य आय वर्ग वाले देशों में इसके करीब 6.8 लाख करोड़ डॉलर रहने का अंदाजा है. वहीं, उच्च आय वर्ग (एचआईसी) वाले देशों में इस नुकसान के 4.9 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचने की बात है. यानी वैश्विक स्तर पर इससे कुल 15.3 लाख करोड़ डॉलर के नुकसान की आशंका है.
थिंक20 में शामिल अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, थिंक टैंकों और अकादमिक जगत के जानकारों ने बताया है कि शिक्षा में आई इन बाधाओं से संस्थागत और व्यक्तिगत स्तर पर असमानता बढ़ेगी. संस्थागत असमानता से जहां शैक्षणिक व्यवस्था के गवर्नेंस पर प्रभाव पड़ेगा, वहीं व्यक्तिगत स्तर पर असमानता से जो लोग पहले से ही जोखिमों का सामना कर रहे हैं, उनकी परेशानी और बढ़ेगी. इसमें वे छात्र शामिल हो सकते हैं, जो किसी संघर्ष प्रभावित क्षेत्र में रह रहे हों या किसी आपात स्थिति का सामना कर रहे हों. छात्र अक्सर गरीबी, लिंग, नस्ल, भाषा और विकलांग होने के कारण ऐसी परेशानियों में फंसते हैं. इसके अलावा, ऐसे भी छात्रों की बड़ी संख्या है, जो महामारी के कारण जोख़िम का सामना कर रहे हैं और शिभा व्यवस्था से कट गए हैं. इस परिस्थिति और 2030 के अजेंडा पर लंबी अवधि में इससे पड़ने वाले असर को देखते हुए जी-20 को न सिर्फ़ शिक्षा नीति को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर जोर देना चाहिए बल्कि जोख़िम में आने वाले क्षेत्रों और समूहों को लक्ष्य करते हुए उसे पर्याप्त वित्तीय संसाधन भी उपलब्ध कराने चाहिए.
थिंक20 में शामिल अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, थिंक टैंकों और अकादमिक जगत के जानकारों ने बताया है कि शिक्षा में आई इन बाधाओं से संस्थागत और व्यक्तिगत स्तर पर असमानता बढ़ेगी. संस्थागत असमानता से जहां शैक्षणिक व्यवस्था के गवर्नेंस पर प्रभाव पड़ेगा,
एसडीजी 4 के लिए फंडिंग पर ध्यान
कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक मंदी से अर्थव्यवस्था और सरकारों की आमदनी पर बुरा असर पड़ेगा. इससे खासतौर पर एलआईसी और एलएमआईसी देशों पर कहीं अधिक चोट पड़ेगी. इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र ने अगस्त 2020 में कहा था कि सरकारी खर्च में कमी आने से बच्चों पर लंबी अवधि में जो दुष्प्रभाव पड़ेगा, उसे कम करने की कोशिश सरकारों को करनी चाहिए. उसने कहा था कि इसके लिए शिक्षा को कोविड-19 से निपटने के लिए दिए जा रहे राहत पैकेज का हिस्सा बनाना होगा. इसे भी सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और अर्थव्यव्था के साथ लंबी अवधि में रिकवरी योजना में शामिल करना होगा. हालांकि, थिंक20 के तहत ‘सामाजिक एकता और कल्याणकारी व्यवस्थाओं के भविष्य’ को लेकर काम कर रही वेस्टर्न यूनिवर्सिटी (कनाडा), सीआईपीपीईसी (अर्जेंटीना), आईआईईपी-यूनेस्को, यूनिसेफ, आईएनईई और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (भारत) के जानकारों ने चेतावनी दी है कि जी-20 देशों से जो शुरुआती संकेत मिले हैं, वे एक जैसे नहीं हैं. इनमें से कई देशों ने फंडिंग में कटौती की है, जिससे संसाधनों की कमी के कारण ऐसी व्यवस्थाओं की रिकवरी पर असर पड़ सकता है.
शुरुआती सबूत बताते हैं कि एलआईसी और एलएमआईसी में महामारी की शुरुआत के बाद से सार्वजनिक शिक्षा के बजट में आधी से अधिक कटौती हुई है. शिक्षा के लिए ऑफिशियल डिवेलपमेंट असिस्टेंस (ओडीए) कम और अप्रत्याशित रहा है. कोविड-19 महामारी के बाद अमीर देशों ने विकासशील देशों के लिए डेवेलपमेंट असिस्टेंस प्रोग्राम शुरू किया था. यह बात सही है कि 2012 के बाद से शिक्षा के लिए वित्तीय मदद बढ़ी है, लेकिन यह अभी भी सिर्फ 2.6 प्रतिशत है, जो यूरोपीय संघ के 10 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत ही कम है. इस वजह से कई देश पीछे छूट गए हैं. कोविड-19 महामारी के दस्तक देने से पहले भी इन इलाकों में बच्चों और नौजवानों की शिक्षा पर तत्कालीन संकटों के कारण बुरा असर पड़ा था. एलआईसी और एलएमआईसी में 2030 तक अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा की खातिर 148 अरब डॉलर सालाना फंडिंग की कमी थी. कोविड-19 महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने से इसमें और 30-45 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है. इसलिए जानकार कह रहे हैं कि इस फंडिंग को बढ़ाया जाना चाहिए. उनका कहना है कि शिक्षा की खातिर कई वर्षों तक अनुमानित फंडिंग की जाए और इसमें देर करना ठीक नहीं होगा.
अगर शिक्षा क्षेत्र के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के कारण बजट बढ़ता है तो भी इसके लिए शर्तें तय करनी होंगी, ताकि एसडीजी-4 लक्ष्य हासिल किए जा सकें. असल में, कोविड-19 महामारी के कारण फंड की मांग बढ़ी है ताकि जिन समूहों पर इसका ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ा है, उसे कम किया जा सके. इस सिलसिले में जी-20 को इक्विटी आधारित फंडिंग की रणनीति को बढ़ावा देना चाहिए. इसके लिए उसे संबंधित देशों को दोहरा रुख अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जिसके तहत सबके लिए सामान्य फंडिंग और सर्वाधिक पिछड़े समूहों के लिए विशेष फंडिंग की जाए. यूनेस्को के मुताबिक इस तरह के उपाय फौरन किए जाने चाहिए. इस तरह से जी-20 देशों को लंबी अवधि के लिए फंडिंग की प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए ताकि शिक्षा क्षेत्र पर पड़े दुष्प्रभावों को कम किया जा सके. उसे इसके लिए फंडिंग के नए तरीके आजमाने होंगे और जहां भी संभव हो, पैसों के वितरण का विकेंद्रीकरण स्थानीय प्राथमिकताओं और उम्मीदों को ध्यान में रखकर करना होगा. इन रणनीतियों की खातिर ओईसीडी डीएसी डोनरों की ओर से मजबूत कमिटमेंट की जरूरत होगी. ना सिर्फ फंडिंग के लिए बल्कि उसे इस प्रक्रिया को संस्थागत रूप देना होगा. कुल मिलाकर, मानवीयता की रक्षा और शिक्षा के लिए वित्तीय मदद बढ़ाना जी-20 देशों की प्राथमिकता में शामिल होना ही चाहिए.
यह बात सही है कि 2012 के बाद से शिक्षा के लिए वित्तीय मदद बढ़ी है, लेकिन यह अभी भी सिर्फ 2.6 प्रतिशत है, जो यूरोपीय संघ के 10 प्रतिशत के लक्ष्य से बहुत ही कम है. इस वजह से कई देश पीछे छूट गए हैं. कोविड-19 महामारी के दस्तक देने से पहले भी इन इलाकों में बच्चों और नौजवानों की शिक्षा पर तत्कालीन संकटों के कारण बुरा असर पड़ा था.
अदीस अबाबा एक्शन अजेंडा को अपनाने के 6 साल बाद कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर मजबूत सहयोग वक्त की मांग है. इस महामारी ने कई मोर्चों पर इंसानों के लिए मुश्किलें पेश की हैं, जिसका अभी तक हमने मजबूती के साथ सामना किया है. इस संकट को 2030 अजेंडा के लिए जी-20 देशों की ओर से सहयोग बढ़ाने के लिहाज से टर्निंग पॉइंट की तरह लिया जाना चाहिए. एसडीजी-4 ‘सबके लिए गुणवत्ता भरी शिक्षा’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस क्षेत्र की खातिर फंडिंग सुनिश्चित करनी होगी. ये लक्ष्य वैश्विक समुदाय के भविष्य की बुनियाद हैं. असल में, समान शिक्षा के अवसर से जो बुनियाद बनेगी, उसकी मदद से आने वाली पीढ़िया आगामी सामाजिक चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर पाएंगी.
[1] थिंक20 में 2018 से सीआईपीपीईसी की अगुवाई में जो शैक्षणिक अजेंडा चल रहा है, यह आर्टिकल उसी पर आधारित है. खासतौर पर इसमें प्रोफेसर प्राची श्रीवास्तव (यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो) और एलेंहाड्रा कार्डिनी (सीआईपीपीईसी) की ओर से जो टी20 पॉलिसी ब्रीफ्स दिए गए, उसे ही आईआईईपी-यूनेस्को, यूनिसेफ, आईएनईई और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक्सपर्ट्स के सहयोग से आगे बढ़ाया गया है. कोविड-19 महामारी से पैदा हुए संकट को देखते हुए इसे सऊदी अरब 2020 और इटली 2021 के टी20 एडिशंस में तैयार किया गया था.
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