इस जुलाई इब्राहिम रायसी के बतौर ईरान के राष्ट्रपति पद के लिए शपथ ग्रहण के क्रम में ईरान के प्रेस में रिपोर्ट छपी कि सऊदी अरब से अब रिश्ते सुधरने की संभावना बढ़ गई है और संबंधों को सुधारने की दिशा में रियाद इस शपथ ग्रहण समारोह में अपने प्रतिनिधि को भेज रहा है. रायसी एक कट्टर धार्मिक नेता हैं लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद से अपने पहले संवाद में ही उनके स्वर सुलह की ओर इशारा कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सऊदी अरब से बातचीत शुरू करने में “कोई बाधा नहीं” है. उन्होंने आगे कहा कि “हमलोग फिर से दूतावास खोलने को तैयार हैं”. दरअसल इस्लामिक शक्तियों के बीच संबंध 2016 से ही ख़राब होने लगे थे जब सऊदी अरब ने दिग्गज शिया धार्मिक नेता को फांसी दे दी, जिसके जवाब में ईरान की जनता ने तेहरान में सऊदी मिशन में तोड़फोड़ को अंजाम दिया था.
हालांकि, सऊदी अरब ने अपने प्रतिनिधि को उद्घाटन समारोह में नहीं भेजा जिससे क्षेत्रीय मेलजोल का वो ताना बाना ख़ारिज हो गया जिसे ईरान ने जल्दबाजी में बुनना चाहा था. ईरान जिस क्षेत्रीय सद्भावना और वैधता की मांग कर रहा था उससे पहले रायसी से रियाद गंभीर रियायतें चाहता था. अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते ईरान की अर्थव्यवस्था लगातार बिखरती जा रही है और इसकी शिया सेना लगातार अलोकप्रिय होती जा रही है, जिन्हें स्थानीय स्तर पर इराक़ का पिट्ठू बताया जाने लगा है. सउदी अरब के साथ शांति बहाल होना ईरान के घरेलू स्तर के साथ-साथ क्षेत्र की कई शक्तियों के लिए बेहतर तो होगा लेकिन जिस तरह ईरान समर्थित मिलिशिया परेशानी खड़ी कर रही है उन्हें इस बात को लेकर नाराजगी भी है.
इस अप्रैल, बाइडेन प्रशासन ने जैसे ही ईरान के साथ साल 2015 के परमाणु समझौते को पलटने के लिए बातचीत शुरू की, ईरान और सऊदी अरब के बीच इराक़ की राजधानी बगदाद में भी एक संवाद की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. लेकिन अभी तक इस पूरे खेल में इराक़ ही सिर्फ़ विजेता नज़र आ रहा है
इस अप्रैल, बाइडेन प्रशासन ने जैसे ही ईरान के साथ साल 2015 के परमाणु समझौते को पलटने के लिए बातचीत शुरू की, ईरान और सऊदी अरब के बीच इराक़ की राजधानी बगदाद में भी एक संवाद की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. लेकिन अभी तक इस पूरे खेल में इराक़ ही सिर्फ़ विजेता नज़र आ रहा है. तेहरान और रियाद एक दूसरे पर अभी भी भरोसा नहीं कर रहे हैं और शांति बहाली के लिए दोनों के बीच कुछ ज़्यादा स्थितियां बन नहीं पायी है जबकि बगदाद शांतिदूत के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है. दशकों तक इराक़ ने जंग, कट्टरपंथी विरोध, आईएसआईएस के हिंसक आतंकवाद को झेला है जिससे इसकी अर्थव्यवस्था लगातार कमजोर होती जा रही है. लेकिन इस साल संकटग्रस्त इस अरबी मुल्क की चर्चा कई सकारात्मक कारणों से हो रही है. यह सऊदी अरब और ईरान के बीच सेतु का काम कर रहा है, यहां तक कि पिछले महीने इराक़ ने एक क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जिससे दूसरे अरब के मुल्क जैसे यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) को भी ईरान के साथ संबंध सुधारने का मंच मिल सका.
इराक़ का बढ़ता प्रभाव और स्वीकार्यता
इराक़ के राष्ट्रपति बरहाम सालेह ने कहा कि “इराक़ जो सालों तक युद्ध और विवादों के लिए सुर्ख़ियों में बना रहा, आज इस क्षेत्र के नेताओं और प्रतिनिधियों के बीच चर्चा के लिए मंच का आयोजन कर रहा है जो इराक़ी संप्रभुता और समृद्धि को सुनिश्चित करता है”
इस सम्मेलन में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल सिसि, जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला (द्वितीय), क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमद अल थानी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने हिस्सा लिया. जबकि कुवैत, यूएई और तुर्की ने इस सम्मेलन में अपने विदेश मंत्रियों को भाग लेने के लिए भेजा.
सऊदी और ईरान के विदेश मंत्रियों ने इस सम्मेलन में हिस्सा भी लिया लेकिन किसी तरह की सकारात्मक पहल नहीं हो पाई. ईरान के विदेश मंत्री फुआद हुसैन ने संकेत दिया कि दोनों मुल्कों को एक छत के नीचे लाना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है. यह बयान इस ओर इशारा करता है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते कितने ख़राब हो गए थे. हुसैन ने कहा कि “वास्तविकता यह है कि दो विरोधी मुल्कों को एक मेज़ पर लाना और उनके बीच बातचीत की पहल करवाना सिर्फ़ हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए ज़रूरी है”.
इराक़ के राष्ट्रपति बरहाम सालेह ने कहा कि “इराक़ जो सालों तक युद्ध और विवादों के लिए सुर्ख़ियों में बना रहा, आज इस क्षेत्र के नेताओं और प्रतिनिधियों के बीच चर्चा के लिए मंच का आयोजन कर रहा है जो इराक़ी संप्रभुता और समृद्धि को सुनिश्चित करता है”
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका के प्रोग्राम डायरेक्टर जूस्ट हिल्टरमन ने क्षेत्रीय सम्मेलन और इराक़ की भूमिका की अहमियत के बारे में लिखा कि – अरब मुल्कों के बीच एक देश ने रियाद और तेहरान को मिलाने की भरसक कोशिश की.
उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन इस बात का संकेत है कि इस क्षेत्र से अमेरिका की वापसी को मध्य पूर्व ने गंभीरता से लिया है और वो इसके लिए जंग और विवाद की जगह प्रजातंत्र को मौका देकर इसकी तैयारी कर रहे थे. हिल्टरमन ने लिखा कि “ऐसी परिस्थिति में, दोनों मुल्कों ने इराक़ को कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने और एक तटस्थ स्थान मुहैया कराने का मौका दिया”. उन्होंने आगे लिखा “यह काफी महत्वपूर्ण है कि यह बातचीत इराक़ में हुई. इराक़ के प्रधानमंत्री मुस्तफा अल कदीम अकेले ऐसे नेता नहीं है जो अपने मुल्क को बाहरी देशों के जंग का मैदान बनने के बजाय इनके बीच सेतु की भूमिका निभाना चाहते हैं. वो इस बदलाव को लाने के लिए सबसे बेहतर स्थिति में हैं. शांति और स्थिरता के लिहाज से इसका परिणाम वाकई शानदार होगा, ख़ास कर वैसे देश के लिए जिसके आंतरिक झगड़ों ने अमेरिका समेत ईरान, सऊदी अरब, तुर्की और दूसरे मुल्कों को तमाम गड़बड़ियां करने का अवसर मुहैया कराया है.”
“यह काफी महत्वपूर्ण है कि यह बातचीत इराक़ में हुई. इराक़ के प्रधानमंत्री मुस्तफा अल कदीम अकेले ऐसे नेता नहीं है जो अपने मुल्क को बाहरी देशों के जंग का मैदान बनने के बजाय इनके बीच सेतु की भूमिका निभाना चाहते हैं. वो इस बदलाव को लाने के लिए सबसे बेहतर स्थिति में हैं.
विश्लेषकों ने इराक़ की भूमिका को बेहद “निर्णायक” बताया और कहा कि इससे इस पूरे विवाद के बीच इराक़ की तटस्थता जाहिर होती है. बावजूद इसके कि ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंध सुधरने में अभी काफी वक़्त लग सकता है, और यहां तक कि अभी यह जानकारी भी निकल कर नहीं आ पाई है कि इस सम्मेलन के बहाने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई भी थी या नहीं, लेकिन सामान्य राय तो यही है कि यह बैठक एक स्वागत योग्य कदम है. एक दिन यह वार्ता कई देशों में शांति की पहल करेगी. यमन, सीरिया और लेबनान जहां सऊदी और ईरान अपना प्रभाव क्षेत्र मानते हैं और इसी वजह से ये मुल्क एक दूसरे से आपस में लड़ते हैं. हालांकि एक आशंका यह भी है कि बातचीत की पहल पूरी तरह ख़त्म भी हो सकती है.
विदेश मंत्री फुआद हसन हालांकि उम्मीद से भरे हुए हैं. उन्होंने कहा कि “वास्तव में इराक़ में और बगदाद में बैठक की शुरुआत हुई है और यह बैठकें अभी जारी हैं और आगे भी जारी रहेंगी”.
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