अमेरिका की नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन आक्रामक हो गया है. ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि वह ताइवान पर हमले की फिराक में है. उधर, अमेरिका ने भी ताइवान की मदद को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. अमेरिका ने यह जरूर कहा है कि वह ताइवान की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उसने यह कभी नहीं कहा कि उसके सैनिक इस जंग में भाग लेंगे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ताइवान ने अपनी सुरक्षा के लिए क्या रणनीति बनाई है. आखिर वह किस महाविनाशक हथियारों के दम पर चीन को चुनौती देता है. आइए जानते हैं इस पर क्या है एक्सपर्ट की राय.
अमेरिका ने यह जरूर कहा है कि वह ताइवान की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उसने यह कभी नहीं कहा कि उसके सैनिक इस जंग में भाग लेंगे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ताइवान ने अपनी सुरक्षा के लिए क्या रणनीति बनाई है.
- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि ताइवान को लेकर अमेरिका ने अपने पत्ते खोले नहीं हैं. चीन और ताइवान के बीच जंग की स्थिति में उसकी क्या रणनीति रहेगी, वह अभी तक मौन है. उन्होनें कहा कि अमेरिका ने जानबूझ कर अपनी रणनीति को साफ नहीं किया है. अमेरिका की इस नीति ने चीन को आगे बढ़ने से रोक दिया है. अमेरिका सिर्फ इतना कहता रहा है कि चीन से युद्ध की स्थिति में वह ताइवान को अकेला नहीं छोड़ेगा. अमेरिका की इस अस्पष्ट नीति ने ताइवान जलडमरूमध्य में दशकों से शांति बनाए रखने में मदद की है. मई में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यह कहा था कि ताइवान की रक्षा करना के लिए उनका देश प्रतिबद्ध है.
- प्रो पंत ने कहा कि अमेरिका इस रणनीति से चीन को ताइवान पर हमले से रोकता है. हालांकि, यह नीति ताइवान को भी अपनी स्वतंत्रता के ऐलान करने से रोकती है. ताइवान को लेकर कई बार यह मांग उठ चुकी है कि अमेरिका को अपनी रणनीति साफ करनी चाहिए. उन्होंने कि अमेरिका अपनी रक्षा नीति के तहत ऐसा करता है. प्रो पंत ने कहा कि चीन को रोकने और ताइवान पर कब्जे की कोशिश को रोकने को नाकाम करने के लिए अमेरिका जो कुछ करेगा, उसमें सिर्फ सैन्य तरीका ही शामिल नहीं होगा. चीन के खिलाफ अमेरिका कई तरीके आजमा सकते हैं. इसमें व्यापारिक, वित्तीय और सूचना रणनीति से जुड़े तरीके हो सकते हैं.
प्रो पंत ने कहा कि चीन को रोकने और ताइवान पर कब्ज़े की कोशिश को रोकने को नाकाम करने के लिए अमेरिका जो कुछ करेगा, उसमें सिर्फ सैन्य तरीका ही शामिल नहीं होगा. चीन के खिलाफ अमेरिका कई तरीके आज़मा सकते हैं.
जंग के लिए क्या है ताइवान की तैयारी
- उन्होंने कहा कि ताइवान ने चीन की किसी भी हिट एंड रन के हमले से बचने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है. वर्षों से ताइवान ने हमले से काफी पहले चेतावनी देने का वार्निंग सिस्टम विकसित कर रखा है. अभी हाल में ताइवान ने अपने देश में एक ऐसा अभ्यास भी किया था, जिसका मकसद युद्ध के समय अपने नागरिकों को बचाना है. उन्होंने कहा कि अगर चीन, ताइवान पर हमला करता है तो उसे शरुआत मीडियम रेंज की मिसाइलों और हवाई हमलों से करनी होगी ताकि ताइवान के रडार स्टेशनों, हवाई पट्टियों और मिसाइलों की खेप को नष्ट किया जा सके.
- ताइवान की इस रणनीति के तहत तट की सुरक्षा परत समुद्र के मध्य गुरिल्ला लड़ाई के लिए नौ-सैनिकों को तैयार रखना है. इनकी मदद के लिए अमेरिका से आए लड़ाकू विमान भी तैयार रहेंगे. इसके लिए छोटे और फुर्तीले नाव मिसाइलों से तैनात रहेंगे, जिन्हें हेलीकॉप्टरों और ज़मीन से मिसाइल लांचरों से मदद मिलेगी. ये चीनी बेड़ों को ताइवान की ज़मीन पर पहुंचने से रोकेंगे.
- सुरक्षा की तीसरी परत की रणनीति के मुताबिक अपनी जमीन और आबादी का बचाव ताइवान के लिए बेहद अहम है. चीन के सैनिकों की संख्या ताइवान के सैनिकों की संख्या से 12 गुना अधिक है. चीन के पास 15 लाख रिजर्व सैनिक हैं. अगर ताइवान की जमीन पर कब्जा करना हो तो चीन इसका इस्तेमाल कर सकता है. तीसरी सुरक्षा परत के तौर पर ताइवान में तेजी से गतिमान, मारक और आसान से छिपाए जाने वाले हथियार काम आएंगे. यूक्रेन की लड़ाई में कंधे पर लाद कर हमले करने वाले जेवलिन और स्टिंगर मिसाइल सिस्टम इसी का उदाहरण हैं. ये हथियार रूसी जहाजों और टैंको के लिए भारी सिरदर्द साबित हुए हैं.
- उन्होंने कहा कि चीन को ताइवान जंग जीतना आसान काम नहीं होगा. ताइवान ने अपनी सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा व्यवस्था अपनाई है. इसके तहत दुश्मन को उसके तट पर रोकना, समुद्र में हमला, तटीय जोन पर हमला और दुश्मन के तटीय मोर्चे पर हमला शामिल है. मजबूत क्षमता वाले दुश्मन के मुकाबले में ताइवान की यही रणनीति है. महंगे लड़ाकू विमान और पनडुब्बियां खरीदना ताइवान की प्राथमिकता नहीं है. इसकी तुलना में गतिमान और गुप्त हथियारों की तैनाती को प्राथमिकता देता है. जैसे एंटी-एयरक्राफ्ट और एंटी-शिप मिसाइलें.
यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.
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